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तीन मिनट के इस वीडियो में देखे अहंकार कैसे आपको संतुष्टि, रिश्तों और सम्मान से कर देता है दूर ? जाने कैसे इस ‘मैं’ से पाए छुटकारा

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मनुष्य के भीतर मौजूद सबसे बड़ा शत्रु कोई बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि उसका अपना ‘अहंकार’ होता है। यह एक ऐसा भाव है जो धीरे-धीरे व्यक्ति को भीतर से खोखला करने लगता है। शुरुआत में यह आत्मसम्मान जैसा लगता है, लेकिन जब यह ‘मैं’ और ‘मेरे’ की सीमाओं में उलझकर व्यवहार, सोच और संबंधों पर हावी होने लगता है, तब यह अहंकार का रूप ले लेता है। नतीजा – न केवल हमारी खुशियां छिन जाती हैं, बल्कि संतुष्टि, रिश्ते और सामाजिक सम्मान भी हमारे हाथों से फिसलने लगते हैं।

अहंकार कैसे करता है नुकसान?
अहंकार एक ऐसा भाव है जो व्यक्ति को अपने ऊपर एक झूठा गर्व करने के लिए उकसाता है। व्यक्ति अपने ज्ञान, पद, धन, रूप या अनुभव को लेकर स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ समझने लगता है। यही श्रेष्ठता की भावना धीरे-धीरे उसे दूसरों से दूर करने लगती है। वह सलाह नहीं लेता, सहयोग नहीं करता और आलोचना को अपमान समझने लगता है।रिश्तों में कड़वाहट का सबसे बड़ा कारण यही ‘मैं’ की भावना है – “मैं सही हूं”, “मैंने किया है”, “मेरे बिना कुछ नहीं हो सकता”, आदि। यह सोच लोगों को हमसे दूर कर देती है, और हम अकेले पड़ जाते हैं।

क्या है ‘मैं’ का जाल?
‘मैं’ यानी Ego एक ऐसा मनोवैज्ञानिक जाल है जिसमें फंसकर व्यक्ति अपनी वास्तविकता भूल जाता है। यह ‘मैं’ उसे वास्तविकता से दूर ले जाता है और एक काल्पनिक श्रेष्ठता का संसार रचता है। इसमें जीने वाला व्यक्ति हमेशा तुलना, प्रतिस्पर्धा, और सावधानीपूर्वक सम्मान पाने की चाह में जीता है। यह चाह अंत में उसे असंतुष्ट, चिंतित, और अशांत बना देती है।

कैसे बनाएं अहंकार से दूरी?
स्वीकार करना सीखें

सबसे पहला कदम है अपने अंदर के अहंकार को पहचानना और यह स्वीकार करना कि हम भी गलत हो सकते हैं।
जब हम अपने दोषों को स्वीकार करते हैं, तो भीतर विनम्रता का बीज अंकुरित होता है।

ध्यान और आत्मनिरीक्षण करें
प्रतिदिन कुछ मिनटों का ध्यान (Meditation) और आत्ममंथन हमारे विचारों को साफ करता है। यह हमें दिखाता है कि हमारी कितनी बातें अहंकार से उपजी हैं।

आभार व्यक्त करना शुरू करें
जब हम दूसरों के योगदान को स्वीकार करते हैं और ‘धन्यवाद’ कहना सीखते हैं, तो हमारा ‘मैं’ थोड़ा-थोड़ा करके छोटा होता जाता है।

सहानुभूति और सहनशीलता अपनाएं
दूसरों के दृष्टिकोण को समझना और क्षमा करने की आदत डालना भी अहंकार को कमजोर करता है।

आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें
भगवद्गीता, उपनिषद, संत कबीर या महावीर स्वामी जैसे संतों की वाणी अहंकार के विरुद्ध एक दर्पण की तरह कार्य करती है। इससे हमें जीवन का गहरा बोध होता है।

सेवा में स्वयं को लगाएं
जब हम निस्वार्थ सेवा करते हैं – जैसे जरूरतमंद की मदद, वृद्धों का सहारा, पशु-पक्षियों की देखभाल – तब हम यह अनुभव करते हैं कि हम अकेले कुछ नहीं हैं, और यही भावना अहंकार को नष्ट करती है।

अहंकार का त्याग: एक आंतरिक क्रांति
अहंकार का त्याग कोई एक दिन का काम नहीं है, यह एक निरंतर अभ्यास है। यह अभ्यास तब और सहज हो जाता है जब व्यक्ति समझता है कि सच्ची खुशी, संतोष और सम्मान दूसरों को साथ लेकर चलने में है, न कि उन्हें पीछे छोड़ने में।आज के तेज़ और प्रतिस्पर्धा भरे जीवन में, जहाँ हर कोई खुद को आगे दिखाने की दौड़ में है, वहाँ यह समझना और भी ज़रूरी हो गया है कि विनम्रता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताकत है।

यदि हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में शांति हो, रिश्ते मजबूत हों, और आत्मिक संतुष्टि बनी रहे, तो हमें इस ‘मैं’ की दीवार को गिराना होगा। हमें समझना होगा कि हम सब मिलकर ही पूर्ण हैं, अकेले नहीं। अहंकार से दूरी बनाना न केवल एक आत्मिक यात्रा है, बल्कि एक बेहतर इंसान बनने की दिशा में पहला कदम भी है।

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