भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है पुरी, उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर, जिसे श्रद्धा और आस्था का अद्भुत प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर न केवल अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके पीछे छिपे गहरे रहस्य और चमत्कारी कथाएं भी इसे विशिष्ट बनाती हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियों वाला यह मंदिर विश्व में अपनी तरह का एकमात्र स्थान है।
मूर्तियों में आज भी धड़कता है भगवान श्रीकृष्ण का हृदय
पुरी के जगन्नाथ मंदिर को लेकर सबसे रहस्यमय और प्रसिद्ध मान्यता यह है कि यहां भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल धड़कता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीकृष्ण ने अपना शरीर छोड़ा, तब उनके शरीर के सारे अंग पंचतत्व में विलीन हो गए, लेकिन उनका हृदय सुरक्षित रह गया। इसी हृदय को ‘ब्रह्म तत्व’ या ‘ब्रह्म पदार्थ’ कहा जाता है, जिसे आज भी मंदिर की मूर्ति में जीवित माना जाता है।
राजा इंद्रद्युम्न को मिला सपना और मूर्तियों का निर्माण
मत्स्य पुराण के अनुसार, एक बार राजा इंद्रद्युम्न को सपने में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हुए और उन्होंने आदेश दिया कि उनकी और उनके भाई-बहन की नीम की लकड़ी से मूर्तियां बनाई जाएं। राजा ने इस आदेश का पालन करते हुए पुरी में मंदिर बनवाया और मूर्तियां स्थापित कीं। यही परंपरा आज भी चली आ रही है।
हर 12 साल में बदलती हैं मूर्तियां
जगन्नाथ मंदिर की एक अनूठी परंपरा यह भी है कि हर 12 वर्षों में यहां की मूर्तियों को बदला जाता है, जिसे ‘नवकलेवर’ कहा जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान पुरानी मूर्तियों से ‘ब्रह्म पदार्थ’ निकालकर नई मूर्तियों में स्थानांतरित किया जाता है। यह एक बेहद रहस्यमयी और गुप्त प्रक्रिया होती है। कहते हैं कि इस पदार्थ को देखना मना है, और इसे देखने वाले की आंखों की रोशनी जा सकती है या उसकी मृत्यु भी हो सकती है। इसलिए पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर इस अनुष्ठान को पूरा करते हैं।
पुजारियों के अनुसार, यह पदार्थ छूने पर खरगोश की तरह उछलता है और इसे छूते हुए एक विशेष कंपन महसूस होता है। यह अनुभव उन्हें दिव्य और रहस्यमयी लगता है।
क्यों बड़ी हैं भगवान जगन्नाथ की आंखें?
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों में उनकी आंखें अत्यंत बड़ी होती हैं। इसके पीछे एक लोककथा प्रचलित है कि जब भगवान जगन्नाथ पहली बार पुरी आए तो उनकी सुंदरता देखकर राजा इंद्रद्युम्न और प्रजा चकित रह गई। उनकी आंखें विस्मय में फैल गईं, और भगवान ने इस भक्तिभाव को देखकर अपनी आंखों को भी बड़ा कर लिया। तभी से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में विशाल नेत्रों का चित्रण किया जाता है।
मंदिर का सिंहद्वार और समुद्र की आवाज का रहस्य
पुरी का यह मंदिर एक और रहस्य को अपने भीतर समेटे हुए है। मंदिर के सिंहद्वार (मुख्य प्रवेश द्वार) पर खड़े होने पर आपको बाहर समुद्र की लहरों की तेज आवाज साफ सुनाई देती है। लेकिन जैसे ही कोई श्रद्धालु मंदिर के अंदर प्रवेश करता है, वह आवाज अचानक गायब हो जाती है। यह चमत्कार आज भी विज्ञान के लिए रहस्य बना हुआ है।
भगवान का बीमार होना और अनूठी सेवा परंपरा
जगन्नाथ मंदिर में हर साल एक ऐसा समय आता है जब भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार हो जाते हैं। इसे “अनवसर” कहते हैं। इस दौरान भगवान की सेवा बिल्कुल उसी तरह की जाती है जैसे किसी बीमार व्यक्ति की की जाती है। उन्हें काढ़ा, तुलसी युक्त पानी और विशेष भोग दिया जाता है। फिर स्नान पूर्ण होने के बाद ‘रथ यात्रा’ का आयोजन होता है, जो विश्वप्रसिद्ध धार्मिक उत्सव है।