Home लाइफ स्टाइल अतीत की बुरी और कड़वी यादें कैसे बन जाती हैं वर्तमान की...

अतीत की बुरी और कड़वी यादें कैसे बन जाती हैं वर्तमान की सबसे बड़ी बाधा? वायरल वीडियो में जाने इन्सका मनोविज्ञान और समाधान

2
0

हम सभी के जीवन में कुछ ऐसे पल होते हैं जो हमेशा के लिए हमारी स्मृतियों में बस जाते हैं—कुछ मीठे, तो कुछ इतने कड़वे कि उन्हें याद करना भी तकलीफ देता है। अतीत की बुरी और कड़वी यादें अक्सर हमारे वर्तमान को प्रभावित करती हैं, और अगर उन्हें समय रहते नहीं समझा गया, तो ये मानसिक और भावनात्मक संतुलन को भी डगमगा सकती हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि इंसान के मस्तिष्क की संरचना कुछ ऐसी है कि वह नकारात्मक घटनाओं को अधिक गहराई से दर्ज करता है। एक शोध के अनुसार, जब व्यक्ति किसी दर्दनाक या अपमानजनक अनुभव से गुजरता है, तो वह स्मृति मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस और ऐमिगडाला हिस्से में स्थायी रूप से अंकित हो जाती है। यही वजह है कि कुछ घटनाएं वर्षों बाद भी वैसी की वैसी महसूस होती हैं—जैसे अभी-अभी घटित हुई हों।

कैसे होती हैं ये यादें हमारे जीवन पर हावी?

जब कोई व्यक्ति बार-बार अतीत की बुरी घटनाओं को याद करता है, तो वह अनजाने में खुद को उस दर्द में दोबारा झोंक देता है। ये यादें इंसान के आत्मविश्वास को कमजोर कर सकती हैं, रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं और कई बार अवसाद, चिंता, या गुस्से का कारण बन जाती हैं। कुछ मामलों में, ये यादें PTSD (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसी गंभीर मानसिक स्थिति को जन्म दे सकती हैं।विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि समाजिक अपेक्षाएं, पारिवारिक दबाव और बार-बार पुराने घावों को कुरेदना भी लोगों को अतीत में उलझा देता है। उदाहरण के लिए, घरेलू हिंसा, स्कूल में मिला अपमान, धोखा या कोई गंभीर दुर्घटना—इन सबकी छाया व्यक्ति की सोच, निर्णय और व्यवहार पर पड़ती है।

क्या है इनसे निपटने का रास्ता?

हालांकि अतीत को बदला नहीं जा सकता, लेकिन उससे सीख लेकर वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि सबसे पहले, व्यक्ति को स्वीकार करना चाहिए कि वह अनुभव उसके जीवन का हिस्सा था। उसे दबाने या नकारने से वह दर्द और गहरा होता जाता है।ध्यान (मेडिटेशन), आत्मचिंतन और सकारात्मक दिनचर्या इन यादों से उबरने में मददगार साबित हो सकते हैं। कई लोग जर्नलिंग (डायरी लिखना), आर्ट थैरेपी या योग के माध्यम से भी खुद को शांत रखने की कोशिश करते हैं।मनोचिकित्सक डॉ. रितिका शर्मा के अनुसार, “जो लोग अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं करते, वे धीरे-धीरे अंदर से टूटने लगते हैं। इसलिए, किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करना, या प्रोफेशनल थैरेपिस्ट की मदद लेना बहुत जरूरी है।”

युवाओं और सोशल मीडिया का असर

आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर अतीत से जुड़ी बातों को बार-बार दोहराती है, चाहे वो ब्रेकअप से जुड़ी हों या ट्रोलिंग से। इससे ना केवल पुरानी यादें ताजा होती हैं बल्कि नए मानसिक घाव भी बनते हैं। जरूरत है कि डिजिटल डिटॉक्स और आत्म-स्वीकृति को अपनाया जाए।हम सभी के जीवन में कुछ ऐसे पल होते हैं जो हमेशा के लिए हमारी स्मृतियों में बस जाते हैं—कुछ मीठे, तो कुछ इतने कड़वे कि उन्हें याद करना भी तकलीफ देता है। अतीत की बुरी और कड़वी यादें अक्सर हमारे वर्तमान को प्रभावित करती हैं, और अगर उन्हें समय रहते नहीं समझा गया, तो ये मानसिक और भावनात्मक संतुलन को भी डगमगा सकती हैं।विशेषज्ञों का मानना है कि इंसान के मस्तिष्क की संरचना कुछ ऐसी है कि वह नकारात्मक घटनाओं को अधिक गहराई से दर्ज करता है। एक शोध के अनुसार, जब व्यक्ति किसी दर्दनाक या अपमानजनक अनुभव से गुजरता है, तो वह स्मृति मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस और ऐमिगडाला हिस्से में स्थायी रूप से अंकित हो जाती है। यही वजह है कि कुछ घटनाएं वर्षों बाद भी वैसी की वैसी महसूस होती हैं—जैसे अभी-अभी घटित हुई हों।

कैसे होती हैं ये यादें हमारे जीवन पर हावी?

जब कोई व्यक्ति बार-बार अतीत की बुरी घटनाओं को याद करता है, तो वह अनजाने में खुद को उस दर्द में दोबारा झोंक देता है। ये यादें इंसान के आत्मविश्वास को कमजोर कर सकती हैं, रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं और कई बार अवसाद, चिंता, या गुस्से का कारण बन जाती हैं। कुछ मामलों में, ये यादें PTSD (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसी गंभीर मानसिक स्थिति को जन्म दे सकती हैं।विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि समाजिक अपेक्षाएं, पारिवारिक दबाव और बार-बार पुराने घावों को कुरेदना भी लोगों को अतीत में उलझा देता है। उदाहरण के लिए, घरेलू हिंसा, स्कूल में मिला अपमान, धोखा या कोई गंभीर दुर्घटना—इन सबकी छाया व्यक्ति की सोच, निर्णय और व्यवहार पर पड़ती है।

क्या है इनसे निपटने का रास्ता?

हालांकि अतीत को बदला नहीं जा सकता, लेकिन उससे सीख लेकर वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक सलाह देते हैं कि सबसे पहले, व्यक्ति को स्वीकार करना चाहिए कि वह अनुभव उसके जीवन का हिस्सा था। उसे दबाने या नकारने से वह दर्द और गहरा होता जाता है।ध्यान (मेडिटेशन), आत्मचिंतन और सकारात्मक दिनचर्या इन यादों से उबरने में मददगार साबित हो सकते हैं। कई लोग जर्नलिंग (डायरी लिखना), आर्ट थैरेपी या योग के माध्यम से भी खुद को शांत रखने की कोशिश करते हैं।मनोचिकित्सक डॉ. रितिका शर्मा के अनुसार, “जो लोग अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं करते, वे धीरे-धीरे अंदर से टूटने लगते हैं। इसलिए, किसी भरोसेमंद व्यक्ति से बात करना, या प्रोफेशनल थैरेपिस्ट की मदद लेना बहुत जरूरी है।”

युवाओं और सोशल मीडिया का असर

आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर अतीत से जुड़ी बातों को बार-बार दोहराती है, चाहे वो ब्रेकअप से जुड़ी हों या ट्रोलिंग से। इससे ना केवल पुरानी यादें ताजा होती हैं बल्कि नए मानसिक घाव भी बनते हैं। जरूरत है कि डिजिटल डिटॉक्स और आत्म-स्वीकृति को अपनाया जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here