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दिमाग के किस हिस्से में स्टोर होती हैं अच्छी और बुरी यादें? 3 मिनट के इस वायरल वीडियो में देखिये यादों का विज्ञान

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हम सबके जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जो सालों बाद भी वैसे ही ताजे लगते हैं — जैसे बचपन की छुट्टियाँ, पहले प्यार की झलक, या किसी दुखद क्षण की कसक। क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे दिमाग में ये यादें आखिर कहाँ और कैसे संग्रहित होती हैं? क्यों कुछ यादें कभी नहीं भूलतीं, जबकि कुछ छोटी-छोटी बातें हम चंद मिनटों में ही भूल जाते हैं? इस रहस्य को जानने के लिए हमें झांकना होगा “यादों के विज्ञान” में — यानी न्यूरोसाइंस की उस दुनिया में जहां भावनाएं, अनुभव और यादें आकार लेती हैं।

कैसे बनती है याद?
हमारा मस्तिष्क एक जटिल कंप्यूटर की तरह है जो हर पल की जानकारी को प्रोसेस करता है। जब हम कोई नई चीज़ देखते हैं, सुनते हैं या महसूस करते हैं, तो वह जानकारी हमारे इंद्रियों के ज़रिए मस्तिष्क के एक हिस्से हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) में पहुंचती है। यही हिस्सा यादों को बनाने और उन्हें संग्रहीत करने का मुख्य केंद्र है।हर अनुभव को दिमाग छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़कर स्टोर करता है — जैसे चेहरा देखना, गंध महसूस करना, आवाज़ सुनना — ये सब अलग-अलग हिस्सों में स्टोर होते हैं, लेकिन जब हम उस अनुभव को याद करते हैं, तो दिमाग इन टुकड़ों को जोड़कर एक पूरा चित्र बना देता है।

अच्छी और बुरी यादों में क्या है फर्क?
दिलचस्प बात यह है कि अच्छी और बुरी यादें दिमाग के अलग-अलग हिस्सों में स्टोर होती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, भावनात्मक रूप से तीव्र यादें — जैसे डर, आघात या गहरा प्रेम — दिमाग के एमिगडाला (Amygdala) नामक भाग में स्टोर होती हैं।एमिगडाला भावनाओं को पहचानता है और उन्हें याद रखने की ताकत देता है। यही कारण है कि कोई दर्दनाक अनुभव या भयावह घटना हमें लंबे समय तक याद रहती है। वहीं सकारात्मक यादें जैसे कोई सफलता का पल या किसी अपने की मुस्कान — हिप्पोकैम्पस और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal Cortex) में एकजुट होती हैं।

क्यों नहीं भूलते कुछ अनुभव?
कुछ यादें इतनी गहराई से जुड़ जाती हैं कि वे हमारी सोच, निर्णय और व्यक्तित्व को भी प्रभावित करने लगती हैं। इसका कारण यह है कि जब हम भावनात्मक रूप से किसी अनुभव से जुड़ते हैं, तो मस्तिष्क उस अनुभव को ‘दीर्घकालिक स्मृति’ (Long-term memory) में बदल देता है। उदाहरण के लिए — एक दुर्घटना में बाल-बाल बचने का पल, किसी अपने को खोने का ग़म, या किसी मंच पर सम्मान पाने की खुशी — ये सभी मस्तिष्क में भावनाओं की तीव्रता के आधार पर “गहरे” अंकित हो जाते हैं।

कैसे तय होती है कि कौन-सी याद रहेगी और कौन-सी मिटेगी?
मस्तिष्क की एक रोचक प्रक्रिया है जिसे “Memory Consolidation” कहा जाता है। इसका अर्थ है — एक अल्पकालिक अनुभव को दीर्घकालिक स्मृति में बदलना। लेकिन यह प्रक्रिया स्वचालित नहीं होती। इसका असर इस पर निर्भर करता है कि उस वक्त आपकी मानसिक अवस्था क्या थी, आप कितने भावनात्मक थे, और उस अनुभव को कितनी बार आपने दोहराया।उदाहरण के लिए, किसी परीक्षा की तैयारी में आपने जो बार-बार पढ़ा — वह स्मृति में लंबे समय तक रहेगा। जबकि रास्ते में चलते वक्त देखे गए एक अनजान व्यक्ति का चेहरा — कुछ ही देर में धुंधला हो सकता है।

क्या यादें मिटाई जा सकती हैं?
वैज्ञानिक शोध अब इस ओर भी इशारा करते हैं कि कुछ यादों को मस्तिष्क से ‘रीप्रोग्राम’ किया जा सकता है। खासकर ट्रॉमा (Trauma) या PTSD से जुड़ी यादों को थेरेपी, मेडिटेशन या न्यूरो-स्टिमुलेशन तकनीकों से कमज़ोर किया जा सकता है। इससे यह संकेत मिलता है कि दिमाग एक लचीली संरचना है, जिसे समय और अभ्यास से बदला जा सकता है।

यादें सिर्फ गुज़रे लम्हों का दस्तावेज़ नहीं होतीं, बल्कि वे हमें यह भी सिखाती हैं कि हम कौन हैं, क्या सोचते हैं और भविष्य में कैसे निर्णय लेंगे। यह समझना कि दिमाग में अच्छी और बुरी यादें कैसे स्टोर होती हैं, हमें न केवल मानसिक स्वास्थ्य की ओर सजग करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि हम अपनी सोच और भावनाओं को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं।इसलिए अगली बार जब कोई पुरानी याद दिल को छू जाए, तो यह जानकर मुस्कराइए — कि वह कहीं आपके दिमाग की गहराई में, सुरक्षित और संजोई हुई है।

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