प्रेम और अहंकार – ये दोनों शब्द सुनने में अलग-अलग लगते हैं, लेकिन जीवन में इनकी टकराहट बेहद गहरी और वास्तविक होती है। आचार्य रजनीश ओशो, जो अपनी मौलिक विचारधारा और गहराई से भरी व्याख्याओं के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं, उन्होंने जीवन के हर पहलू पर ध्यान दिया है, लेकिन प्रेम और अहंकार को लेकर उनके विचार विशेष रूप से मार्गदर्शक हैं। ओशो कहते हैं, “जहाँ अहंकार है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता और जहाँ प्रेम है वहाँ अहंकार स्वयं जलकर भस्म हो जाता है।”ओशो के इस कथन के पीछे केवल शब्दों की गहराई नहीं, बल्कि एक जीवित अनुभव है – एक सच्ची समझ, जो जीवन के अनुभवों और ध्यान के गहन अभ्यास से जन्मी है। वे बताते हैं कि अहंकार का आधार “मैं” है – मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मैंने क्या पाया है, मुझे कितना सम्मान मिला है, मेरी तुलना दूसरों से कैसी है। जबकि प्रेम का आधार “तुम” है – तुम क्या महसूस करते हो, तुम्हारी खुशी क्या है, तुम्हारे सुख में मेरा सुख है। इन दोनों दृष्टिकोणों में ज़मीन-आसमान का अंतर है।
प्रेम में होता है समर्पण, अहंकार में होता है दावा
ओशो समझाते हैं कि प्रेम का मूल स्वभाव समर्पण है, जबकि अहंकार का स्वभाव दावा करना है। जब आप किसी से सच्चा प्रेम करते हैं, तो आप अपेक्षा नहीं करते, आप उसे बदलना नहीं चाहते, आप उसे उसकी संपूर्णता में स्वीकार करते हैं। लेकिन जब अहंकार हावी होता है, तो व्यक्ति अपने प्रेम को भी स्वामित्व में बदल देता है – ‘वह मेरा है’, ‘उसे मेरी बात माननी चाहिए’, ‘अगर वह मुझसे प्यार करता है तो मुझे प्राथमिकता देनी चाहिए’।यही अहंकार प्रेम को धीरे-धीरे नष्ट करता है, क्योंकि उसमें स्वतंत्रता नहीं होती, बल्कि नियंत्रण होता है। ओशो कहते हैं, “प्रेम फूल की तरह है, वह तभी खिलता है जब वह स्वतंत्र हो। उसे पकड़ने की कोशिश की, तो वह मुरझा जाएगा।”
प्रेम एक एहसास है, अहंकार एक दीवार
ओशो ने प्रेम को हमेशा एक प्रवाह कहा है – एक बहाव जो भीतर से आता है, बिना किसी शर्त, बिना किसी बंधन के। वहीं, अहंकार एक दीवार की तरह होता है – एक कठोरता, जो आपको न केवल दूसरों से अलग करती है, बल्कि खुद अपने भीतर भी दूरी बना देती है। जब कोई व्यक्ति अहंकारी होता है, तो वह केवल अपने दर्प में जीता है। वह दूसरों की भावनाओं को नहीं देख पाता, उनकी पीड़ा को नहीं समझ पाता।लेकिन जब कोई व्यक्ति प्रेम में होता है, तो उसकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। वह न केवल अपने प्रिय की भावनाओं को समझता है, बल्कि पूरे अस्तित्व के साथ एक गहरा संबंध महसूस करता है। ओशो यही कहते हैं कि “प्रेम तुम्हें खोलता है, अहंकार तुम्हें बंद कर देता है।”
क्यों प्रेमियों के बीच भी आ जाता है अहंकार?
बहुत बार देखा जाता है कि प्रेमियों के बीच भी तकरार होती है, रिश्ते टूट जाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रेम के साथ-साथ अहंकार भी अंदर ही अंदर पलने लगता है। जैसे ही कोई यह सोचने लगे कि “मैं ज़्यादा देता हूँ”, “उसने मेरी कद्र नहीं की”, “मुझे नज़रअंदाज़ किया गया”, वहीं से अहंकार सिर उठाने लगता है। ओशो कहते हैं कि सच्चा प्रेम वहाँ होता है जहाँ देने में आनंद है, न कि बदले में पाने की अपेक्षा।
अहंकार छोड़ना ही है सच्चा प्रेम
ओशो के अनुसार, जो प्रेमी अपने रिश्ते को स्थायी और गहराईभरा बनाना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले अपने भीतर के अहंकार को पहचानना और त्यागना सीखना होगा। क्योंकि जब तक “मैं” प्रमुख रहेगा, “हम” कभी जन्म नहीं ले पाएगा। वह यह भी कहते हैं कि ध्यान – यानी self-awareness – ही वह मार्ग है जो व्यक्ति को अहंकार से बाहर निकालकर प्रेम के शुद्ध जल में प्रवाहित करता है।