पंजाबी सिंगर और बॉलीवुड एक्टर दिलजीत दोसांझ का विवादों से चोली दामन का नाता है। दिलजीत लगातार किसी न किसी विवाद में फंसते रहे हैं। इन दिनों उनकी फिल्मों को लेकर विवाद खड़े हो रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद आई उनकी फिल्म सरदारजी 3 में पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर के होने पर बवाल मच गया और भारत में इस फिल्म की रिलीज टाल दी गई। इसी तरह उनकी एक और फिल्म रिलीज से पहले ही विवादों में घिरती जा रही है। दिलजीत दोसांझ की फिल्म ‘पंजाब 95’ करीब एक साल से केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के पास अटकी हुई है। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म के 112 सीन्स पर आपत्ति जताई है और इन्हें हटाने को कहा है, जिसके लिए दिलजीत दोसांझ और फिल्म के निर्माता तैयार नहीं दिख रहे हैं। दिलजीत और फिल्म के निर्माता हनी त्रेहान और सुनयना सुरेश ने इस बारे में शेयर किए गए एक इंस्टाग्राम पोस्ट में अपनी बात रखने की कोशिश भी की है। पंजाब में आतंकवाद के दौर की पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालरा की जीवनगाथा पर आधारित है।
जसवंत सिंह खालरा कौन थे और उनकी कहानी पर आधारित फिल्म पर विवाद क्यों हो रहा है, आइए 8 बिंदुओं में जानते हैं-
1. जसवंत सिंह बैंक निदेशक से मानवाधिकार कार्यकर्ता बने
जसवंत सिंह खालरा पंजाब के एक मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ता थे। अमृतसर निवासी खालरा सहकारी बैंक के निदेशक थे, लेकिन बाद में वे मानवाधिकार कार्यकर्ता बन गए। उन्हें शिरोमणि अकाली दल की मानवाधिकार शाखा का महासचिव नियुक्त किया गया था। इस शाखा का गठन अकाली दल ने विशेष रूप से पंजाब में आतंकवाद के उन्मूलन के नाम पर सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई अवैध हत्याओं की जाँच के लिए किया था।
2. जसवंत सिंह फ़र्ज़ी मुठभेड़ों के ख़िलाफ़ एक बड़ी आवाज़ बन गए थे
1980 से 1990 के बीच आतंकवाद के चरम के दौरान जसवंत सिंह खालरा पंजाब में काफ़ी मशहूर थे। इसकी वजह पंजाब में अचानक गायब हुए हज़ारों सिख युवकों को वापस लाने के लिए जसवंत सिंह खालरा का लगातार चलाया गया अभियान था। इनमें से कई युवक बाद में आतंकवाद के खात्मे के नाम पर पंजाब पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में मारे गए। इन मुठभेड़ों को ‘सरकारी हत्याएँ’ बताकर खालरा दोषी पुलिसकर्मियों को सज़ा दिलाने की मुहिम में लगे रहे। इस वजह से वे सरकारी व्यवस्था के निशाने पर तो थे ही, जनता के बीच भी उनकी खूब चर्चा हुई।
3. खालरा भी अचानक लापता हो गए, फिर मिला उनका शव
लोगों को ‘गायब’ करने वाली सरकारी व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ते हुए खालरा ख़ुद कथित तौर पर इसका शिकार हो गए। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 6 सितंबर, 1995 को खालरा का उनके ही घर के बाहर से अपहरण कर लिया गया था। यह अपहरण कथित तौर पर तत्कालीन पंजाब पुलिस अधिकारियों के इशारे पर किया गया था। आरोप है कि इसके बाद खालरा को झबाल पुलिस स्टेशन में बेरहमी से प्रताड़ित किया गया। क्रूर यातना के बाद, खालरा के सिर में गोली मार दी गई और उसके शव को हरिके पुल के पास सतलुज नदी के किनारे जला दिया गया।
4. दस साल बाद 6 पुलिसकर्मी दोषी करार
खालरा की विधवा परमजीत कौर ने उनके लापता होने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसके बाद 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया। सीबीआई जाँच के बाद, वर्ष 2005 में पटियाला कोर्ट ने खालरा की हत्या के लिए छह पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया। इस फैसले को वर्ष 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
5. मानवाधिकार आयोग ने भी खालरा मामले की जाँच के आदेश दिए थे
वर्ष 2011 में ही, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने एक उच्च स्तरीय राज्य समिति को पंजाब में सैन्य शासन के दौरान 657 मामलों की जाँच करने का निर्देश दिया था, जिनमें आधिकारिक एजेंसियों ने अज्ञात शवों की पहचान करके उन्हें जला दिया था। खालरा का मामला भी इनमें शामिल था। परमजीत कौर वर्तमान में खालरा मिशन संस्था चलाती हैं।
6. चार साल पहले शुरू हुई थी फिल्म का निर्माण
चार साल पहले, निर्माता-निर्देशक हनी त्रेहान ने जसवंत सिंह खालरा की कहानी पर एक फिल्म बनाना शुरू किया था। इसके लिए खालरा परिवार की अनुमति भी ली गई थी। इस साल की शुरुआत में, दिलजीत दोसांझ ने फिल्म पूरी होने और 7 फरवरी को रिलीज़ होने की घोषणा की थी, लेकिन सेंसर बोर्ड से मंज़ूरी न मिलने के कारण, तब से इसकी रिलीज़ लगातार टल रही है। एक साक्षात्कार में, त्रेहान ने आरोप लगाया था कि फिल्म को टोरंटो फिल्म फेस्टिवल से जबरन वापस ले लिया गया और विदेशों में इसकी रिलीज़ पर भी रोक लगा दी गई।
7. निर्माताओं ने अब तक 1,800 पन्नों के दस्तावेज़ जमा किए हैं
रिपोर्ट के अनुसार, हनी त्रेहान ने यह भी कहा कि उन्होंने इस फिल्म के तथ्यों को सही साबित करने के लिए अब तक 1,800 पन्नों के दस्तावेज़ जमा कर दिए हैं। इसके बावजूद, सेंसर बोर्ड ने फिल्म में 127 कट लगाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन खालड़ा की विधवा पत्नी परमजीत कौर इसके खिलाफ हैं। उनका कहना है कि यह फिल्म हमारी सहमति से बनी है। इसलिए इसे बिना किसी कट के रिलीज़ किया जाना चाहिए।
8. दोसांझ पहले भी पंजाब में आतंकवाद पर एक फिल्म बना चुके हैं
दिलजीत दोसांझ पहले भी पंजाब में आतंकवाद के दौर की पृष्ठभूमि पर फिल्में बना चुके हैं। उन्होंने फिल्म पंजाब 1984 में काम किया था, जो 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों (Sikh Riots 1984) की पृष्ठभूमि पर बनी थी. यह फिल्म इन दंगों के दौरान मानवाधिकारों के खुले उल्लंघन पर आधारित थी, लेकिन साल 2014 में इस फिल्म की रिलीज का कोई विरोध नहीं हुआ। करीब दो साल पहले उनकी फिल्म चमकीला रिलीज हुई थी, जो पंजाबी गायक अमर सिंह चमकीला के जीवन पर आधारित थी. चमकीला को ‘पंजाब का एल्विस’ कहा जाता था। उनके गानों को अश्लील और फूहड़ बताते हुए उनकी और उनकी गायिका पत्नी की रहस्यमय परिस्थितियों में सार्वजनिक रूप से गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस फिल्म की कुछ खालिस्तान समर्थकों ने आलोचना की थी, लेकिन इसकी रिलीज में कोई दिक्कत नहीं आई. दिलजीत दोसांझ ने चमकीला की इसी कहानी पर पंजाबी भाषा में एक फिल्म ‘जोड़ी’ भी बनाई थी, लेकिन इसकी रिलीज को भी नहीं रोका गया।