सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार (7 अगस्त, 2025) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बरामद लगभग 23,000 करोड़ रुपये का काला धन वित्तीय धोखाधड़ी के शिकार लोगों में बाँट दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष विधि अधिकारी ने यह बयान मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की विशेष पीठ के समक्ष दिया। पीठ सुप्रीम कोर्ट के 2 मई के विवादास्पद फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई कर रही थी।
2 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने भूषण स्टील एंड पावर लिमिटेड (बीएसपीएल) के लिए जेएसडब्ल्यू स्टील की समाधान योजना को दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) का उल्लंघन बताते हुए खारिज कर दिया था। अदालत ने आईबीसी के तहत बीएसपीएल के परिसमापन का आदेश दिया था।31 जुलाई को, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले को वापस ले लिया और इससे संबंधित समीक्षा याचिकाओं पर नए सिरे से सुनवाई करने का फैसला किया। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान एक वकील ने बीपीएसएल मामले में प्रवर्तन निदेशालय की जाँच का भी ज़िक्र किया।
मुख्य न्यायाधीश ने चुटकी लेते हुए कहा, “यहाँ प्रवर्तन निदेशालय भी मौजूद है।” जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “मैं एक ऐसा तथ्य बताना चाहता हूँ जो किसी भी अदालत में पहले कभी नहीं कहा गया और वह यह है कि… प्रवर्तन निदेशालय ने 23,000 करोड़ रुपये (काला धन) बरामद करके पीड़ितों को दिए हैं।” विधि अधिकारी ने कहा कि बरामद किया गया धन सरकारी खजाने में नहीं रहता और वित्तीय अपराधों के पीड़ितों को दिया जाता है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने पूछा, “सजा की दर क्या है?” सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आपराधिक अपराधों में सजा की दर भी बहुत कम है और उन्होंने देश की आपराधिक न्याय प्रणाली की खामियों को इसका मुख्य कारण बताया। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अगर उन्हें दोषी नहीं भी ठहराया जाता है, तो भी आप वर्षों से उन्हें (आरोपियों को) लगभग बिना किसी सुनवाई के सजा दिलाने में सफल रहे हैं।”