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भारत में सिर्फ 2 सालों में 16% तक घटी बेवफाई की दर, रिश्तों में ‘स्पष्टता’ को ‘अराजकता’ पर दी जा रही तरजीह, सर्वे में हुआ बड़ा खुलासा

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नई दिल्ली: कभी समाज में वर्जित मानी जाने वाली बेवफाई (Infidelity) अब भारत में नई परिभाषा गढ़ रही है। एक ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीयों के रिश्तों में पिछले दो वर्षों में धोखा देने की प्रवृत्ति में 16% की गिरावट दर्ज हुई है। यह आंकड़ा न केवल व्यवहारिक बदलाव को दर्शाता है, बल्कि सोच और वैचारिक दृष्टिकोण में हो रहे गहरे परिवर्तन का भी संकेत देता है। ग्लीडेन (Gleeden) जो दुनिया का सबसे बड़ा एक्स्ट्रा-मैरिटल डेटिंग ऐप है ने इप्सोस (IPSOS) रिसर्च के साथ मिलकर किए सर्वे में पाया कि 2025 में 48% प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपने पार्टनर को धोखा दिया, जबकि 2020 में यह संख्या 57% थी। ग्लीडेन इंडिया की कंट्री मैनेजर सिबिल शिडेल का कहना है, “पारंपरिक विवाह का अर्थ हमेशा एकांगी (Monogamous) रिश्तों से जोड़ा जाता था, लेकिन आज के कपल यह सवाल करने लगे हैं कि क्या वफादारी का मतलब सिर्फ़ विशिष्टता (Exclusivity) ही है? अब बेवफाई की जगह खुली बातचीत, स्पष्ट सीमाएं और नए तरह के रिश्तों की परिभाषा ले रही है। लोग अब दोहरी ज़िंदगी से थक चुके हैं और ‘कट्टर पारदर्शिता’ (Radical Transparency) की ओर बढ़ रहे हैं — चाहे इसका मतलब नैतिक गैर-एकांगी संबंध (Ethical Non-Monogamy) हो या खुले रिश्ते।”

मोनोगैमी का घटता ‘एकाधिकार’

मोनोगैमी — यानी सिर्फ एक पार्टनर के साथ जीवन बिताने की अवधारणा — अब पहले जैसी लोकप्रिय नहीं रही। सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों का मानना है कि इंसान स्वाभाविक रूप से मोनोगैमस नहीं है। हालांकि, जेन-एक्स (Gen-X) वर्ग के 50% लोग मानते हैं कि मोनोगैमी पूरी तरह संभव है। दिलचस्प तथ्य यह है कि 61% प्रतिभागियों का मानना है कि समाज चाहता है कि लोग एकांगी रहें, भले ही यह उनकी प्राकृतिक प्रवृत्ति के विपरीत हो।

खुले रिश्तों की बढ़ती स्वीकार्यता

सर्वे के मुताबिक, 69% प्रतिभागियों ने कहा कि खुले रिश्ते (Open Relationships) अब समाज में अधिक स्वीकार्य हो रहे हैं। वहीं, 35% लोगों ने स्वीकार किया कि वे खुले रिश्ते में रह चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि 41% लोग तुरंत अपने पार्टनर के प्रस्ताव पर खुले रिश्ते के लिए तैयार हो जाएंगे। ये रिश्ते केवल शारीरिक संबंधों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आपसी समझौते, तय नियमों और पारस्परिक सम्मान पर आधारित होते हैं। जैसे-जैसे भारतीय जोड़े इन वार्ताओं को छुपाने की बजाय खुलकर स्वीकारने लगे हैं, ‘धोखा’ (Betrayal) की जगह ‘सहमति से स्वतंत्रता’ (Negotiated Independence) ने ले ली है।

धोखे से ‘चॉइस’ की ओर सफर

16% की गिरावट का मतलब यह नहीं कि लोग अब रिश्तों के बाहर आकर्षण महसूस नहीं कर रहे, बल्कि अब वे इसे छुपाने की बजाय ईमानदारी से निभा रहे हैं। भाषा भी बदल रही है — अब “Cheating” की जगह “Choice” और “Betrayal” की जगह “Boundaries” का इस्तेमाल हो रहा है। महिलाएं इस बदलाव में अहम भूमिका निभा रही हैं। ग्लीडेन के भारतीय यूज़र्स में महिलाएं अब लगभग 35% हैं। सर्वे में पाया गया कि महिलाएं पुरुषों जितनी ही संभावना से शारीरिक और भावनात्मक बेवफाई करती हैं (46%), लेकिन वे बेवफाई को अधिक सख्ती से परिभाषित करती हैं। महिलाओं के लिए सिर्फ़ फ़्लर्टिंग, भावनात्मक जुड़ाव, या किसी और के बारे में सोचने भर को भी ‘धोखा’ माना जा सकता है। यह बढ़ती आत्म-जागरूकता ऐसे रिश्तों की मांग बढ़ा रही है, जहां बिना किसी ‘गुप्त अपराधबोध’ के भावनात्मक ईमानदारी कायम रहे।

‘हैप्पीली एवर आफ्टर’ से ‘हैप्पीली ऑनस्ट’ तक

आंकड़ों के अनुसार, 94% भारतीय अपने रिश्तों में खुश होने का दावा करते हैं और 84% अपनी सेक्स लाइफ से संतुष्ट हैं, लेकिन वास्तविकता में केवल 25% लोग पूरी तरह संतुष्ट महसूस करते हैं। बाकी लोग भावनात्मक जुड़ाव, रोमांच या संवाद की कमी महसूस करते हैं। यह अंतराल एक नए सांस्कृतिक दौर को जन्म दे रहा है, जहां लोग रिश्ते तोड़ने की बजाय उन्हें सुधारने के नए तरीके खोज रहे हैं। सर्वे में 60% विवाहित लोगों ने कहा कि अगर शादी में असंतोष हो, तो वे तलाक़ की बजाय शादी के भीतर ही किसी और से संबंध (Intramarital Affair) रखना पसंद करेंगे। वहीं, 47% लोगों का मानना है कि कभी-कभी बेवफाई भी रिश्ते में नई जान डाल सकती है। 62% लोगों ने कहा कि अगर धोखा एक बार की गलती हो और पार्टनर सच्चे मन से पछतावा जताए, तो वे माफ़ करने पर विचार करेंगे। यह दिखाता है कि भारतीय समाज नैतिक कठोरता (Moral Absolutism) से भावनात्मक यथार्थवाद (Emotional Realism) की ओर बढ़ रहा है।

अधिक ‘लचीले’ रिश्तों का भविष्य

बेवफाई की घटती दर का मतलब पारंपरिक मोनोगैमी की ओर लौटना नहीं है, बल्कि यह एक नए रिश्ते के युग का संकेत है।

सर्वे के अनुसार:

  • 64% प्रतिभागियों के रिश्तों को लेकर विचार पिछले 5 वर्षों में बदले हैं।

  • 69% मानते हैं कि खुले रिश्ते अब ज्यादा स्वीकार्य हैं।

  • 59% को लगता है कि भविष्य में यही रिश्तों का नया मॉडल बन सकता है।

भले ही समाज के कुछ हिस्सों में बेवफाई को अब भी ‘स्कैंडल’ माना जाता हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि आज के कपल स्पष्टता को अराजकता पर, जिज्ञासा को आलोचना पर, और खुले संवाद को रहस्यों पर तरजीह दे रहे हैं। भारत में रिश्तों का अर्थ तेजी से बदल रहा है। वफादारी अब प्रतिबंधों से नहीं, बल्कि सम्मान से परिभाषित हो रही है। लोग अब यह तय कर रहे हैं कि वे मोनोगैमस रहना चाहते हैं, पॉलीएमोरस, या बीच का कोई रास्ता चुनना चाहते हैं। ‘परफेक्शन’ की जगह अब ‘ऑथेंटिसिटी’ यानी असलियत ने ले ली है। और यह बदलाव बताता है कि भारतीय समाज एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रहा है, जहां सच्चाई, सहमति और स्पष्टता रिश्तों की नई नींव बन रही है।

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