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दिमाग की लाइब्रेरी में कैसे और कहां छुपी रहती हैं बुरी यादें? वैज्ञानिक शोध में सामने आया चौंकाने वाला सच, वीडियो में जाने सबकुछ ​​​​​​​

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हम सभी के जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जिन्हें याद कर हम खुश हो जाते हैं, वहीं कुछ ऐसी भी यादें होती हैं जो मन को बेचैन कर देती हैं। बुरी यादें अक्सर इतनी गहरी छाप छोड़ जाती हैं कि चाहकर भी उनसे छुटकारा पाना आसान नहीं होता। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो दिमाग हमारी हर याद को एक फाइल की तरह सहेज कर रखता है। फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ फाइलें तुरंत सामने आ जाती हैं और कुछ दबी रह जाती हैं। लेकिन सवाल ये है कि आखिर बुरी यादें हमारे दिमाग में कहां स्टोर होती हैं और क्यों वे इतनी लंबे समय तक हमें परेशान करती रहती हैं?


यादों का भंडार : हिप्पोकैम्पस और एमिग्डाला

मानव मस्तिष्क कई हिस्सों में बंटा होता है और हर हिस्सा एक खास भूमिका निभाता है। यादों के निर्माण और उन्हें सहेज कर रखने का काम मुख्य रूप से हिप्पोकैम्पस (Hippocampus) और एमिग्डाला (Amygdala) करते हैं।हिप्पोकैम्पस को दिमाग की “लाइब्रेरी” कहा जाता है, जहां हमारी अधिकतर यादें स्टोर होती हैं। यहां घटनाओं, जगहों और अनुभवों से जुड़ी जानकारी संरक्षित रहती है।एमिग्डाला भावनाओं को नियंत्रित करता है। जब कोई घटना भावनात्मक रूप से बहुत प्रभावशाली होती है, चाहे वह खुशी की हो या दुख की, तो एमिग्डाला उसे और भी मजबूत कर देता है। यही वजह है कि बुरी घटनाएं अक्सर दिमाग से मिट नहीं पातीं।

तनाव और बुरी यादों का गहरा रिश्ता

जब कोई व्यक्ति किसी बुरी घटना का सामना करता है, तो शरीर में कॉर्टिसोल (Cortisol) और एड्रेनालिन (Adrenaline) जैसे हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। यह हार्मोन उस समय शरीर को “फाइट या फ्लाइट मोड” में ले जाते हैं। इस दौरान दिमाग उस घटना से जुड़ी हर छोटी-बड़ी डिटेल रिकॉर्ड कर लेता है। इसलिए आघात देने वाली घटनाएं (Trauma) गहरी और लंबे समय तक याद रहती हैं।

क्यों भूलना मुश्किल होता है बुरी यादों को?

बुरी यादें इसलिए आसानी से नहीं मिट पातीं क्योंकि वे भावनाओं से जुड़ी होती हैं। किसी भी याद की मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि उससे जुड़ा भावनात्मक अनुभव कितना गहरा था। उदाहरण के तौर पर, बचपन की कोई सामान्य घटना हम भूल सकते हैं, लेकिन अगर बचपन में कोई डरावना अनुभव हुआ हो, तो वह जीवनभर दिमाग में छपा रह सकता है।इसके अलावा, बुरी यादें बार-बार दिमाग में खुद-ब-खुद आ जाती हैं। इसे इनवॉलंटरी मेमोरी (Involuntary Memory) कहते हैं। यही कारण है कि आघात झेल चुके लोग अक्सर फ्लैशबैक का अनुभव करते हैं।

वैज्ञानिकों का प्रयास : क्या बुरी यादों को मिटाया जा सकता है?
दुनियाभर में वैज्ञानिक इस बात पर रिसर्च कर रहे हैं कि क्या दिमाग से बुरी यादों को मिटाया जा सकता है। हाल ही में हुई कुछ रिसर्च से पता चला है कि खास दवाओं और थेरेपी की मदद से यादों की तीव्रता को कम किया जा सकता है।
कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT) : इसमें मरीज को बार-बार उस घटना का सामना करवाया जाता है ताकि उसका डर कम हो सके।
आई मूवमेंट डीसेंसिटाइजेशन एंड रीप्रोसेसिंग (EMDR) : इसमें आंखों की मूवमेंट के जरिए मस्तिष्क को “रीप्रोसेस” कराया जाता है ताकि याद का असर कम हो।
वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में दिमाग की न्यूरल कनेक्टिविटी को प्रभावित कर बुरी यादों को कमजोर करना संभव हो सकता है।

बुरी यादों से निपटने के उपाय
हालांकि विज्ञान अभी पूरी तरह से बुरी यादों को मिटाने का समाधान नहीं खोज पाया है, लेकिन कुछ तरीके जरूर हैं जिनसे उनका असर कम किया जा सकता है।
ध्यान और मेडिटेशन : यह दिमाग को शांत करता है और नकारात्मक विचारों को कम करता है।
पॉजिटिव सोच : जब भी बुरी यादें सताएं, तो खुद को अच्छे अनुभव याद दिलाना मददगार होता है।
लिखकर बाहर निकालना : मन में छुपी यादों और भावनाओं को लिखना तनाव को काफी हद तक कम करता है।
काउंसलिंग लेना : मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद से यादों के बोझ को हल्का किया जा सकता है।

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