Home मनोरंजन B. Saroja Devi: तमिल अभिनेत्री बी सरोजा देवी का निधन, 87 साल...

B. Saroja Devi: तमिल अभिनेत्री बी सरोजा देवी का निधन, 87 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

6
0

भारतीय सिनेमा की एक चमकती नक्षत्र, बी. सरोजा देवी अब हमारे बीच नहीं रहीं। सोमवार, 14 जुलाई को बेंगलुरु के मल्लेश्वरम स्थित उनके आवास पर 87 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारियों से जूझ रही थीं। उनके निधन की खबर से न केवल दक्षिण भारत, बल्कि पूरे देश में शोक की लहर फैल गई है। सिनेमा जगत ने न केवल एक दिग्गज अदाकारा को खोया है, बल्कि एक युग को अलविदा कहा है, जिसने अभिनय को शालीनता, गरिमा और उत्कृष्टता के साथ परिभाषित किया। अभिनय सरस्वती’ और ‘कन्नड़थु पैंगिली; जैसे नामों से प्रसिद्ध, वह दक्षिण भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख हस्ती थीं. उन्होंने कन्नड़, तमिल, तेलुगु और हिंदी भाषाओं में 200 से ज्यादा फिल्में शामिल थीं. सरोजा देवी ने 17 साल की उम्र में फिल्मों की दुनिया में एंट्री की. वह 1955 में आई महाकवि कालीदास में नजर आईं. जबकि 1958 में आई नदोदी मनन से उन्हें पहचान मिली. इस फिल्म में वह एमजी रामाचंद्रन (एमजीआर) के साथ नजर आई थीं. इसी फिल्म से वह तमिल सिनेमा में भी पॉपुलर हो गई थीं.

कौन थीं बी. सरोजा देवी?

बी. सरोजा देवी का जन्म 7 जनवरी 1938 को बेंगलुरु में हुआ था। वोक्कालिगा फैमिली में पैदा हुईं सरोजा देवी के पिता भैरप्पा पुलिस ऑफिसर थे, जबकि उनकी मान रूद्रम्मा हाउसवाइफ थीं। वे अपने पैरेंट्स की चौथी बेटी थीं। बताया जाता है कि उनके पिता ने उन्हें डांस सीखने के लिए कहा था और एक्टिंग में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित भी किया था। दूसरी ओर उनकी मां बेहद सख्त थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उन्होंने अपनी बेटी को स्विमसूट और स्लीवलेस ब्लाउज ना पहनने की हिदायत दी थी। उन्होंने अपनी मां की इस सलाह का जिंदगीभर पालन किया। बताया जाता है कि 13 साल की उम्र में जब वे एक स्टेज फंक्शन में गाना गा रही थीं, तब उन्हें बी. आर. कृष्णमूर्ति ने फिल्म ऑफर की थी, लेकिन उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया था।

कन्नड़ सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार थीं बी. सरोजा देवी

बी. सरोजा देवी कन्नड़ सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार थीं। उन्हें बड़ा ब्रेक कन्नड़ की फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ से मिला था, जो 1955 में रिलीज हुई थी। इस नेशनल अवॉर्ड विजेता फिल्म में उन्होंने सपोर्टिंग रोल किया था। 1956 में रिलीज हुई ‘Thirumanam’ से उन्होंने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था। 1957 में आई ‘Panduranga Mahatyam’ उनकी पहली तेलुगु फिल्म थी। 1959 में आई ‘पैगाम’ से बी. सरोजा देवी ने हिंदी फिल्मों में कदम रखा था। 1955 से 1984 के बीच 29 साल में बी. सरोजा देवी ने लगातार 161 फ़िल्में की थीं। जबकि पूरे करियर में उनकी फिल्मों की संख्या 200 से ज्यादा रही। 2019 में आखिरी बार उन्होंने कन्नड़ फिल्म ‘Natasaarvabhowm’ में कैमियो किया था। 2020 वे उन्हें कलर्स तमिल के रियलिटी शो ‘Kodeeswari’ में पार्टिसिपेंट के तौर पर देखा गया था।

अभिनय की सरस्वती

बी. सरोजा देवी का जन्म 7 जनवरी, 1938 को हुआ था और उन्होंने भारतीय सिनेमा में 1950 के दशक से लेकर 1990 के दशक तक छाप छोड़ी। वे पांच भाषाओं — कन्नड़, तमिल, तेलुगु, हिंदी और सिंहली — की फिल्मों में अभिनय कर चुकी थीं और उनकी कुल फिल्मों की संख्या 160 से अधिक है। उन्हें उनके भावपूर्ण अभिनय के लिए “अभिनय सरस्वती” कहा जाता था — एक ऐसा सम्मान जो केवल कला की साधना से ही पाया जा सकता है।

महाकवि कालिदास से कस्तूरी निवास तक

बी. सरोजा देवी ने अपने करियर की शुरुआत कन्नड़ फिल्म ‘महाकवि कालिदास’ से की थी, जिसने उन्हें सिनेमा के विशाल मंच पर उतारा। इसके बाद उन्होंने ‘कित्तूर चेनम्मा’, ‘भक्त कनकदास’, ‘अन्ना थम्मा’, ‘बाले बंगारा’, ‘नागकन्निके’, ‘बेट्टाडा हूवु’ और ‘कस्तूरी निवास’ जैसी कालजयी फिल्मों में अभिनय किया। सिर्फ कन्नड़ ही नहीं, तमिल और तेलुगु सिनेमा में भी वे एक चमकता हुआ सितारा बनीं। ‘नाडोडी मन्नन’, ‘कर्पूर करसी’, ‘पांडुरंग महात्म्य’, ‘थिरुमनम’ जैसी फिल्मों ने उन्हें दक्षिण भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार बना दिया।

सम्मानों से सजी उपलब्धियां

बी. सरोजा देवी को उनके शानदार योगदान के लिए देश की सर्वोच्च नागरिक उपाधियों से नवाजा गया:

  • पद्मश्री — वर्ष 1969

  • पद्म भूषण — वर्ष 1992

इसके अलावा, उन्हें बंगलोर यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद उपाधि और तमिलनाडु सरकार की ओर से ‘कलैमामणि पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ।

उनकी विरासत, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा

उनकी फिल्मों और अभिनय की शैली ने सैकड़ों कलाकारों को प्रेरित किया है। एक समय में उन्होंने एम.जी. रामचंद्रन, एन.टी. रामाराव, शिवाजी गणेशन जैसे सुपरस्टार्स के साथ काम किया और उनके जोड़ीदार के रूप में अनगिनत ब्लॉकबस्टर दीं। वे अभिनय को केवल काम नहीं, बल्कि सेवा मानती थीं। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था,

“मैंने अभिनय को मां सरस्वती की पूजा की तरह अपनाया है।”

📍 अंतिम संस्कार और राष्ट्र की श्रद्धांजलि

उनके पार्थिव शरीर को बेंगलुरु में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा और अंतिम संस्कार मल्लेश्वरम में किया जाएगा। पूरे देश से फिल्म कलाकार, राजनेता, लेखक और उनके प्रशंसक उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंच रहे हैं।

🕯️ भारतीय सिनेमा ने खोया एक रत्न

बी. सरोजा देवी सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं, बल्कि एक संस्कार, एक संवेदना, और एक संस्कृति थीं। उनके जाने से जो खालीपन आया है, उसे भरना नामुमकिन है। उनकी मुस्कान, आंखों की भाषा, और आत्मीयता भरा अभिनय आज भी लाखों दिलों में जिंदा है।

“वो मंच पर नहीं रहीं, लेकिन पर्दे पर उनका साया अमर रहेगा।”

श्रद्धांजलि, बी. सरोजा देवी — अभिनय की देवी को।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here