बिज़नस न्यूज़ डेस्क, केंद्रीय बजट 2025 को पेश करने में अब कुछ ही दिन बचे हैं। 1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में आम बजट पेश करेंगी। बजट से पहले हर साल की तरह इस बार भी हलवा सेरेमनी होगी। यह खास परंपरा भारतीय बजट परंपरा का अहम हिस्सा है। आइए जानते हैं, हलवा सेरेमनी का महत्व, इसका उद्देश्य और इससे जुड़ा इतिहास।
क्या है हलवा सेरेमनी?
हलवा सेरेमनी एक परंपरा है जो हर साल बजट पेश करने से पहले मनाई जाती है। बजट डॉक्यूमेंट पेश होने से पहले वित्त मंत्रालय में हलवा सेरेमनी होती है। हलवा सेरेमनी का आयोजन नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट स्थित बजट प्रेस में होता है। इसमें बड़ी कढ़ाही में हलवा बनाया जाता है, जिसे वित्त मंत्री और वित्त मंत्रालय के अधिकारी आपस में बांटकर खाते हैं। इसके बाद बजट की छपाई का काम शुरू होता है।
अधिकारियों का 10 दिन का बंद रहना
हलवा सेरेमनी के बाद बजट की गोपनीयता बनाए रखने के लिए बजट छपाई में शामिल 100 से अधिक कर्मचारी और अधिकारी नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में रहते हैं। ये अधिकारी बजट पेश होने तक बाहर नहीं आते। इस पीरियड में उनका बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह से काट दिया जाता है, ताकि बजट की कोई भी जानकारी लीक न हो।
हलवा सेरेमनी का मकसद
भारतीय परंपरा के अनुसार, किसी भी शुभ काम से पहले मिठाई खाना और खिलाना आवश्यक माना जाता है। हलवा सेरेमनी इस विचारधारा का प्रतीक है। यह आयोजन बजट बनाने में महीनों से मेहनत कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच उत्साह और सकारात्मक माहौल पैदा करता है।
हलवा सेरेमनी का इतिहास और बदलाव
हलवा सेरेमनी की परंपरा दशकों पुरानी है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और परंपराओं को वित्तीय प्रक्रियाओं से जोड़ता है। हालांकि, 2022 में कोविड-19 महामारी के कारण इस परंपरा को स्थगित कर दिया गया था। उस साल बजट पूरी तरह से डिजिटल रूप से पेश किया गया था और हलवा के बजाय मिठाई बांटी गई थी। इसके बाद 2023 में इस परंपरा को फिर से शुरू किया गया।
बजट 2025 के लिए तैयारियां पूरी
इस साल भी हलवा सेरेमनी के बाद वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने बजट छपाई की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हलवा सेरेमनी इस बात का प्रतीक है कि बजट तैयार करने का अंतिम चरण पूरा हो चुका है और अब इसे पेश करने की बारी है। हलवा सेरेमनी भारतीय बजट प्रक्रिया का एक अहम और दिलचस्प हिस्सा है। यह न केवल एक परंपरा है, बल्कि बजट बनाने में शामिल सभी कर्मचारियों के प्रयासों का सम्मान करने और उनके काम को मान्यता देने का प्रतीक भी है।