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Income Tax Return 2025 : ITR फाइल करते समय कैसे बदलें अपना टैक्स रिजीम, ये है तरीका

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अगर आपने इस साल की शुरुआत में अपने एंप्लॉयर को पुरानी टैक्स रिजीम (Old Tax Regime) के आधार पर TDS (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) काटने के लिए कहा था, लेकिन अब आपको लग रहा है कि नई टैक्स रिजीम (New Tax Regime) आपके लिए ज्यादा फायदेमंद है — तो घबराने की जरूरत नहीं है। मौजूदा आयकर कानून आपको एक बार और सोचने और अपना फैसला बदलने की अनुमति देते हैं।

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस स्थिति में आपको क्या करना चाहिए और आप अपनी टैक्स व्यवस्था को कैसे बदल सकते हैं, ताकि आपको नुकसान न हो और टैक्स कम से कम देना पड़े।

टैक्स रिजीम बदलने का विकल्प मिलता है ITR भरते समय

आयकर विभाग ने वेतनभोगी कर्मचारियों को यह सुविधा दी है कि वे ITR (Income Tax Return) भरते समय अपनी टैक्स रिजीम को बदल सकते हैं। यानी भले ही आपने साल की शुरुआत में अपने ऑफिस को पुरानी टैक्स व्यवस्था को चुनने के लिए बोला हो, लेकिन जब आप साल के अंत में ITR दाखिल करेंगे, तब आप नई टैक्स व्यवस्था को चुन सकते हैं।

अगर आपने अपने एंप्लॉयर को कोई विकल्प नहीं बताया था, तो डिफॉल्ट रूप से आपका TDS नई टैक्स रिजीम के हिसाब से ही काटा जाएगा। इसलिए इस बात की जानकारी और समझ होना जरूरी है कि किस रिजीम में आपको ज्यादा फायदा हो रहा है।

धारा 115BAC क्या कहती है?

धारा 115BAC आयकर अधिनियम की वह धारा है जो नई टैक्स रिजीम को परिभाषित करती है। इस व्यवस्था में कम टैक्स स्लैब दिए गए हैं, लेकिन इसके बदले में आपको कई महत्वपूर्ण टैक्स छूटों और कटौतियों को छोड़ना पड़ता है, जैसे:

  • धारा 80C के तहत मिलने वाली निवेश की छूट

  • HRA (हाउस रेंट अलाउंस)

  • LTA (लीव ट्रैवल अलाउंस)

इसलिए नई टैक्स रिजीम चुनने से पहले आपको यह जरूर जांच लेना चाहिए कि क्या आपके पास इतनी टैक्स छूटें हैं जो पुरानी व्यवस्था को आपके लिए फायदेमंद बनाती हैं या नहीं। यदि नहीं, तो नई टैक्स रिजीम आपके लिए बेहतर हो सकती है।

कौन-सी स्थिति में आप पुरानी टैक्स रिजीम में नहीं जा सकते

अगर आप अपना ITR समय पर दाखिल करते हैं (यानी ड्यू डेट से पहले), तो आप पुरानी या नई — किसी भी टैक्स रिजीम को चुन सकते हैं। लेकिन अगर आप लेट रिटर्न (Belated Return) फाइल करते हैं यानी ड्यू डेट के बाद ITR जमा करते हैं, तो आपको केवल नई टैक्स रिजीम ही मिलती है।

आयकर पोर्टल लेट रिटर्न दाखिल करने वालों को पुरानी टैक्स व्यवस्था चुनने का ऑप्शन नहीं देता है। ऐसे में अगर आपने पुरानी व्यवस्था में टैक्स कटवाया था लेकिन अब लेट रिटर्न फाइल कर रहे हैं, तो आपकी गणना नई टैक्स रिजीम के हिसाब से होगी — भले ही उसमें आपको ज्यादा टैक्स देना पड़े।

इन अहम तारीखों का रखें ध्यान

आयकर विभाग ने टैक्स फाइलिंग के लिए अलग-अलग कैटेगरी के टैक्सपेयर्स के लिए अलग-अलग अंतिम तिथि निर्धारित की हैं:

  • वेतनभोगी व्यक्तियों के लिए ITR की अंतिम तिथि – 31 जुलाई

  • ऑडिट करवाने वाले व्यवसाय और प्रोफेशनल्स – 31 अक्टूबर

  • ट्रांसफर प्राइसिंग के तहत आने वाली संस्थाएं – 30 नवंबर

  • विलंबित (Belated) या संशोधित (Revised) रिटर्न दाखिल करने की आखिरी तारीख – 31 दिसंबर

  • Assessment Year खत्म होने के 4 साल बाद तक – अंतिम मौका 31 मार्च

अगर आप इन तय तारीखों से पहले अपना ITR दाखिल करते हैं, तो आप अपनी पसंद की टैक्स व्यवस्था चुन सकते हैं और TDS की गड़बड़ियों को भी ठीक कर सकते हैं।

समाधान कैसे करें?

  1. अपनी इनकम और कटौतियों का तुलनात्मक विश्लेषण करें। देखें कि कौन-सी टैक्स रिजीम आपके लिए ज्यादा लाभदायक है।

  2. यदि आपको नई टैक्स रिजीम बेहतर लगती है, तो ITR भरते समय उसे चुन लें, भले ही आपका TDS पुरानी व्यवस्था के अनुसार कटा हो।

  3. सही समय पर ITR फाइल करें। ड्यू डेट से पहले रिटर्न फाइल करने से आपको अपनी मनचाही टैक्स रिजीम चुनने का पूरा अधिकार मिलता है।

  4. अगर कन्फ्यूजन हो तो किसी टैक्स एक्सपर्ट से सलाह लें, ताकि किसी भी गलती से बचा जा सके।

निष्कर्ष
अगर आपने साल की शुरुआत में पुरानी टैक्स रिजीम चुनी थी, लेकिन अब नई व्यवस्था बेहतर लग रही है, तो आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। ITR भरते समय आपको एक और मौका मिलता है अपनी टैक्स रिजीम को बदलने का। बस ध्यान रखें कि रिटर्न समय पर भरा जाए और सही कैलकुलेशन करके निर्णय लिया जाए। टैक्स प्लानिंग में समझदारी ही सबसे बड़ा फायदा देती है।

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