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Mahakal Story: आखिर क्यों सिर्फ भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्रों की ही की जाती है पूजा, अन्य देवताओं के संतानों की क्यों नहीं?

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हिन्दू धर्म में भगवान शिव जैसा भरा-पूरा परिवार शायद ही किसी भगवान का है। सिर्फ इतना ही नहीं, भगवान शिव के साथ-साथ उनके पुत्रों और कई जगहों पर उनकी पुत्रियों की भी पूजा होती है। वो उतने ही प्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त हैं, जितने भगवान शिव। लेकिन ऐसा अन्य देवताओं के मामले में नहीं है। आखिर ऐसा क्यों है, चलिए समझने का प्रयास करते हैं…

भगवान शिव और देवी पार्वती के सभी संतानों में भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की पूजा सबसे अधिक की जाती है। इनकी पूजा के पीछे गहरे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारण हैं। यह उनके प्रतीकात्मक महत्व और विशेषताओं से जुड़ा हुआ है।

भगवान गणेश: प्रथम पूज्य और विघ्नहर्ता

भगवान गणेश को विघ्नहर्ता (विघ्नों को दूर करने वाले) और प्रथम पूज्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान गणेश ने ज्ञान, बुद्धि और अपने समर्पण से प्रथम पूजन का अधिकार प्राप्त किया। यह कथा है कि जब देवताओं ने दौड़ प्रतियोगिता आयोजित की, तो गणेश जी ने अपने माता-पिता (शिव और पार्वती) की परिक्रमा करके अपनी बुद्धिमत्ता और भक्ति का प्रमाण दिया। उसके बाद उन्हें यह वरदान मिला था कि हर शुभ कार्य की शुरुआत में उनकी पूजा अनिवार्य है। अगर प्रतीकात्मक दृष्टिकोण से देखें, तो गणेश जी की पूजा सफलता, ज्ञान और समृद्धि की प्रतीक है।

भगवान कार्तिकेय: शक्ति, साहस और विजय के देवता

दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को व्यापक रूप से पूजा जाता है। भगवान कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद, मुरुगन या कुमारस्वामी भी कहा जाता है, युद्ध और विजय के देवता हैं। कार्तिकेय ने कई असुरों को पराजित किया, विशेषकर तारकासुर का वध किया, जो देवताओं के लिए बड़ा संकट बन गया था। उनकी पूजा शक्ति, साहस और बुराई पर विजय का प्रतीक है। वे युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं और जीवन में उत्साह, ऊर्जा और संकल्प का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा का कारण

भगवान गणेश और कार्तिकेय दोनों अपने माता-पिताशिव और पार्वती के गुणों के विस्तार हैं। गणेश जी शिव की शक्ति और पार्वती की करुणा के प्रतीक हैं। वहीं कार्तिकेय जी शिव की वीरता और पार्वती की दृढ़ता को दर्शाते हैं। दोनों पुत्रों की पूजा से भक्त शिव और पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त करते हैं क्योंकि ये दोनों उनकी संतानों के रूप में उनकी ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शिव परिवार को आदर्श पारिवारिक एकता का प्रतीक माना गया है। शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय के पूजन से परिवार में प्रेम, एकता और शांति की भावना बढ़ती है।

अन्य देवताओं के बच्चों की पूजा क्यों नहीं?

अन्य देवताओं के संतानें या तो अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं, या उनके विशेष कार्य इतने व्यापक रूप से उल्लेखित नहीं हैं। जैसे कि, इंद्र के पुत्र जयंत और यमराज के पुत्रों का उल्लेख शास्त्रों में मिलता है, लेकिन उनके गुण या कार्य व्यापक रूप से पूजनीय नहीं हैं। साथ ही आप यह भी कह सकते हैं कि हिन्दू धर्म में देवताओं से ज्यादा उनके पदों की पूजा होती है क्योंकि उनके पद की जो प्रकृति और शक्ति होती है, लोग उसे पूजते हैं और साथ ही उस पद को धारण करने वाले की भी पूजा होती है। गणेश जी को गणपति कहा जाता है, जो आदि काल से ही प्रमुख पद हैं। इसलिए किसी भी अन्य देवता से पहले उनकी पूजा की जानी चाहिए। रामचरितमानस के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती ने अपने विवाह के समय गणेश की पूजा की थी। उस वक्त उस कल्प के अनुसार दूसरे गणपति थे, उनके पुत्र नहीं। इसी तरह, सूर्य के पुत्र, यम , शनि और अश्विन (या अश्विनी कुमार) भी व्यापक रूप से पूजे जाते हैं क्योंकि उन्हें क्रमशः मृत्यु के देवता, न्याय के देवता और देवताओं के चिकित्सक जैसी प्रमुख उपाधियाँ प्राप्त हैं। हालांकि, इनकी लोकप्रियता या जरूरत लोगों को वैसी नहीं है।

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