मनोरंजन न्यूज़ डेस्क – उड़े जब-जब जुल्फें तेरी…, इशारों इशारों में दिल देने वाले… जैसे बेहतरीन गानों को संगीत देकर संगीत की दुनिया में अलग पहचान बनाने वाले ओपी नैयर की आज 16वीं पुण्यतिथि है। ओपी नैयर के फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म आसमान से हुई थी, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाने का श्रेय गुरु दत्त को जाता है। ओपी ने बेहतरीन संगीत देकर न सिर्फ नाम कमाया, बल्कि बॉलीवुड में उनके किस्से भी कम नहीं थे। चाहे बात लता मंगेशकर से उनकी रचना का कोई गाना कभी न खोने की कसम खाने की हो या नाराज होने के बाद मोहम्मद रफी से 3 साल तक बात न करने की, वे अपने स्वभाव के कारण भी बॉलीवुड की खास पहचान थे।
गुरु दत्त ने की थी गीता की सिफारिश
नैयर का जन्म 16 जनवरी 1926 को लाहौर में हुआ था। उन्हें शुरू से ही संगीत में काफी रुचि थी। ऐसे में उन्होंने संगीत की ट्रेनिंग लेने के बाद फिल्मों में संगीत देना शुरू कर दिया। हालांकि ओपी ने पहली बार फिल्म आसमान में संगीत दिया था, लेकिन उन्हें पहचान गुरु दत्त की फिल्मों से मिली। दरअसल गुरु दत्त की पत्नी गीता दत्त को ओपी का संगीत बहुत पसंद था. इसलिए उन्होंने अपने मंगेतर गुरु दत्त से ओपी को अपनी फिल्म में लेने की सिफारिश की. गुरु दत्त गीता की सलाह को कैसे मना कर सकते थे. इसलिए उन्होंने ओपी को 1954 की फिल्म ‘आर-पार’ में संगीत देने का मौका दिया. इस फिल्म में ओपी ने ‘कभी आर कभी पार..’, ‘बाबूजी धीरे चलना..’ जैसे बेहतरीन गानों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. फिर क्या, ओपी गुरु दत्त की पसंदीदा सूची में शामिल हो गए और ओपी गुरु दत्त की ज्यादातर फिल्मों में संगीत देने लगे. उन्होंने गुरु दत्त के साथ मिस्टर एंड मिस 55 और सीआईडी जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया.
मोहम्मद रफी से नाराज हुए तो 3 साल तक बात नहीं की
एक दिन ओपी को मोहम्मद रफी के साथ संगीत रिकॉर्ड करना था. इसलिए वे 70 संगीतकारों के साथ रिकॉर्डिंग के लिए मोहम्मद रफी का इंतजार करने लगे. ओपी समय के बहुत पाबंद थे हालांकि मोहम्मद रफी को भी देर से आना पसंद नहीं था, लेकिन उस दिन मोहम्मद रफी एक घंटे देर से आए. ओपी ने जब मोहम्मद रफी से पूछा तो उन्होंने कहा, माफ कीजिए रिकॉर्डिंग में थोड़ी देरी हो गई। नैयर साहब ने कुछ नहीं कहा और संगीतकारों से रिकॉर्डिंग शुरू करने को कहा। इस दौरान एक संगीतकार ने यूं ही मोहम्मद रफी से पूछ लिया कि वह कहां देर से आए। रफी साहब ने अपनी मासूमियत में कहा, शंकर जयकिशन के यहां रिकॉर्डिंग हो रही थी, वहीं देर हो गई। फिर क्या, शंकर जयकिशन का नाम सुनते ही ओपी नैयर भड़क गए और संगीतकारों से कह दिया, ‘अब रिकॉर्डिंग नहीं होगी।
रफी साहब आप अपने घर जाएं, संगीतकार आप भी अपने घर जाएं, मैं भी घर जा रहा हूं। अब मेरा रिकॉर्डिंग करने का बिल्कुल भी मूड नहीं है।’ फिर उन्होंने उस गाने को महेंद्र कपूर से रिकॉर्ड करवाया। इसके बाद करीब तीन साल तक ओपी और मोहम्मद रफी के बीच बातचीत बंद रही। इस दौरान ओपी ने मोहम्मद रफी का कोई गाना भी मिस नहीं किया ऐसे में लता मंगेशकर से उनकी दुश्मनी फिल्म इंडस्ट्री में मशहूर थी। अपने फिल्मी करियर में ओपी ने कभी लता मंगेशकर से गाने नहीं गवाए और न ही कभी उनके नाम पर अवॉर्ड लिए।
81 साल की उम्र में हुआ निधन
ओपी ने अपने करियर में फिल्म इंडस्ट्री को कई बेहतरीन गाने दिए। जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है। हालांकि इस दौरान उन पर एक विद्रोही और लीक से हटकर संगीतकार होने का ठप्पा भी लगा, लेकिन उन्होंने कभी इसका अफसोस नहीं जताया। वह हमेशा अपने वक्त से आगे की सोचते थे, लेकिन उनकी जिंदगी का आखिरी सफर अच्छा नहीं रहा। कहा जाता है कि जिंदगी के आखिरी पड़ाव में वह अकेले रह गए थे। ऐसे में 28 जनवरी 2007 को 81 साल की उम्र में उन्होंने अपने एक फैन के घर पर आखिरी सांस ली। अपने संगीत की वजह से ओपी का नाम आज भी कला जगत में गर्व के साथ लिया जाता है।