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Osho के इस वायरल वीडियो में जानिए अहंकार की निशानियाँ, कहीं आप भी तो नहीं इसके शिकार ?

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अहंकार – यह शब्द सुनने में भले ही साधारण लगे, लेकिन ओशो के अनुसार यह इंसान के भीतर एक ऐसा जहर है, जो धीरे-धीरे आत्मा को खा जाता है। ओशो रजनीश, जो अपने मौलिक विचारों और गहन आध्यात्मिक दृष्टिकोण के लिए विश्वप्रसिद्ध रहे, उन्होंने अहंकार को आत्म-ज्ञान के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट बताया। उनके अनुसार, “अहंकार एक नकली ‘मैं’ है जिसे हमने समाज, शिक्षा और अनुभवों से गढ़ा है – और यह नकली ‘मैं’ हमें कभी हमारे असली अस्तित्व से मिलने नहीं देता।”

अहंकार की निशानियाँ: क्या आप भी हैं इसके शिकार?
ओशो ने अहंकार को पहचानने के कुछ स्पष्ट संकेत बताए हैं, जो अगर समय रहते न समझे जाएं, तो व्यक्ति आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टि से खोखला हो सकता है:हमेशा सही साबित होने की जिद: अगर आपको हर बात में खुद को सही साबित करने की आदत है, तो यह अहंकार की पहली निशानी है। ओशो कहते हैं – “सत्य को जानने वाला व्यक्ति बहस नहीं करता, वह शांति से सुनता है, क्योंकि उसे खुद को साबित नहीं करना होता।”दूसरों से श्रेष्ठ समझना: जब हम यह मान बैठते हैं कि हम दूसरों से ज्यादा जानते हैं, ज्यादा अच्छे हैं, ज्यादा अनुभवी हैं – तो यह आभास ही अहंकार से उपजा होता है।

आलोचना सहन न कर पाना: यदि कोई आपकी आलोचना करे और आप तुरंत आहत हो जाएं, चिढ़ जाएं या प्रतिक्रिया देने लगें, तो इसका अर्थ है कि आपके भीतर एक ‘नाजुक अहंकार’ बैठा है।

सराहना की भूख: ओशो कहते हैं, “जिसे अपने अस्तित्व का ज्ञान होता है, उसे प्रशंसा की जरूरत नहीं होती। वह जानता है कि वह क्या है।” लेकिन अगर आप हमेशा तारीफ की तलाश में रहते हैं, तो यह भीतर खालीपन और अहंकार दोनों का संकेत है।

अकेलापन और कटाव की भावना: अहंकारी व्यक्ति अक्सर खुद को दूसरों से अलग महसूस करता है। वह जुड़ने की बजाय ऊपर दिखना चाहता है – और यह भावना उसे अंततः अकेला कर देती है।

ओशो के अनुसार अहंकार कैसे बनता है?
ओशो का मानना था कि बच्चा जब पैदा होता है, तब उसके भीतर कोई अहंकार नहीं होता। वह सिर्फ ‘होना’ जानता है, ‘दिखाना’ नहीं। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, समाज, माता-पिता, स्कूल, धर्म – सब उसे बताते हैं कि वह क्या है और क्या नहीं है। धीरे-धीरे वह एक मुखौटा पहन लेता है, और इस नकली पहचान को ही वह ‘मैं’ समझने लगता है। यही झूठा ‘मैं’ है अहंकार।

अहंकार को कैसे करें दूर? ओशो की दृष्टि में समाधान
स्वयं को देखना (Self-Observation)

ओशो बार-बार कहते हैं कि “देखो, बस देखो।” जब भी आप खुद को किसी प्रतिक्रिया, गुस्से, दुख या घमंड में पाते हैं – खुद को देखें। बिना निर्णय के। यह देखने की प्रक्रिया धीरे-धीरे आपके भीतर जागरूकता को जन्म देती है, जो अहंकार को जला देती है।

ध्यान (Meditation)
ओशो की ध्यान विधियां जैसे “डायनेमिक मेडिटेशन”, “कुंडलिनी ध्यान”, “नादब्रह्म ध्यान” आदि सिर्फ शांति लाने के लिए नहीं हैं, बल्कि भीतर के झूठे आवरणों को हटाने के लिए हैं। ध्यान वह औजार है जो अहंकार की परतों को बिना संघर्ष के अलग कर देता है।

प्रेम और विनम्रता
ओशो कहते हैं, “प्रेम एकमात्र ऊर्जा है जो अहंकार को नष्ट कर सकती है।” जब आप किसी से सच्चा प्रेम करते हैं, तब आप ‘मैं’ और ‘तू’ की सीमाएं तोड़ते हैं। इसी तरह, विनम्रता कोई दिखावा नहीं बल्कि भीतर की स्थिति होनी चाहिए – जहाँ आप जानते हैं कि आप भी इस ब्रह्मांड का छोटा सा हिस्सा हैं, न कि इसका केंद्र।

हास्य का विकास करें
ओशो के प्रवचनों में कई बार गूढ़ विषयों के बीच हास्य की झलक मिलती है। उनका मानना था कि “अहंकारी व्यक्ति हँस नहीं सकता, क्योंकि वह खुद को बहुत गंभीरता से लेता है।” खुद पर हँसना सीखें, यही विनम्रता की शुरुआत है।

अस्वीकृति को स्वीकार करें
जीवन में नकारात्मक अनुभवों या लोगों की अस्वीकृति से भागना नहीं चाहिए। जब आप अस्वीकृति को स्वीकार कर लेते हैं, तब आपको खुद को साबित करने की जरूरत नहीं रहती – और यहीं से अहंकार कमजोर होने लगता है।

ओशो की दृष्टि में अहंकार को मारना नहीं है – बस उसे पहचानना है। जैसे ही आप अपने भीतर के झूठे ‘मैं’ को देख लेते हैं, वह गायब होने लगता है। ध्यान, जागरूकता और प्रेम के सहारे हम इस जीवन को सहजता, विनम्रता और शांति से जी सकते हैं। याद रखें, अहंकार जितना मजबूत दिखता है, उतना ही खोखला होता है। ओशो कहते हैं – “जहाँ ‘मैं’ है, वहाँ ईश्वर नहीं है। जहाँ ईश्वर है, वहाँ ‘मैं’ नहीं बचता।”

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