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Rana Naidu Season 2 Review: राणा का वही पुराना अंदाज़ ,वही दमदार पटकथा और गज़ब का थ्रिल, ज़रूर देखें

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नेटफ्लिक्स पर आई वेब सीरीज़ ‘राणा नायडू’ के दूसरे सीज़न को लेकर दर्शकों में जबरदस्त उत्सुकता थी। पहले सीज़न के बाद से ही फैंस जानना चाहते थे कि आगे क्या होगा—और सीज़न 2 ने ये इंतज़ार काफी हद तक वाजिब साबित किया है। राणा दग्गुबाती और वेंकटेश दग्गुबाती की दमदार जोड़ी एक बार फिर आमने-सामने है, और इस बार मामला और ज़्यादा पर्सनल होता जा रहा है।

कहानी: जहां टूटी थी, वहीं से शुरू होती है

कहानी वहीं से उठती है जहां पहला सीज़न खत्म हुआ था। राणा नायडू अब पहले से ज़्यादा उलझा हुआ है—अपने अतीत, अपने परिवार और अपने अंदर के ज़ख्मों से। इस बार कुछ नए किरदार कहानी में जुड़ते हैं, जो राणा की दुनिया और भी पेचीदा बना देते हैं।

हर एपिसोड के बाद कहानी में ऐसा मोड़ आता है कि आप चाहकर भी अगला एपिसोड छो़ड़ नहीं सकते। यह कहना गलत नहीं होगा कि स्क्रिप्ट ने फिर से दर्शकों की नब्ज पकड़ ली है।

राणा दग्गुबाती का वही भारी अंदाज़, लेकिन और परिपक्व

राणा ने अपने किरदार को इस बार और गहराई से पकड़ा है। कम बोलने वाला, लेकिन भीतर ही भीतर खौलता किरदार—उन्होंने बखूबी निभाया है। उनके एक्सप्रेशन्स और बॉडी लैंग्वेज वही पुराना रौब लेकर आते हैं, जो किरदार की पहचान बन चुके हैं।

दूसरी ओर वेंकटेश दग्गुबाती अब भी अपने रोल में पूरी तरह फिट हैं। कुछ सीन में वो राणा से भी ज़्यादा प्रभाव छोड़ते हैं। बाप-बेटे की जंग में कई बार दर्शक तय नहीं कर पाते कि किसके पक्ष में खड़ा हुआ जाए।

ड्रामा, थ्रिल और इमोशन्स का सही मेल

सीज़न 2 में एक चीज़ जो खासतौर पर उभरकर सामने आती है, वो है इमोशनल लेयरिंग। केवल मारधाड़ या थ्रिल नहीं, बल्कि रिश्तों के बीच की खींचतान और भीतर की टूटन भी कहानी का अहम हिस्सा है। राणा और उसके बच्चों के साथ रिश्ते, उसकी पत्नी के साथ तनाव और खुद से उसकी लड़ाई—ये सभी पहलू कहानी को ज़्यादा गहराई देते हैं।

निर्देशन और तकनीकी पक्ष भी मजबूत

सीज़न का डायरेक्शन काफी टाइट है। कैमरा वर्क, एडिटिंग और बैकग्राउंड म्यूजिक—सब कुछ माहौल को और असरदार बनाते हैं। मुंबई और विदेश की लोकेशन्स को अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया गया है।

हर एपिसोड की लंबाई कंट्रोल में है, और सीरीज़ बोर नहीं करती। डायरेक्टर ने इस बार किरदारों की परतें खोलने पर ज़्यादा ध्यान दिया है।

थोड़ी खामियां भी हैं

कहानी भले मज़बूत हो, लेकिन कुछ जगहों पर लगता है कि गालियों और गुस्से का ओवरडोज़ है। ज़रूरत से ज़्यादा डार्क माहौल और कुछ किरदारों के अधूरे सब-प्लॉट थोड़ी निराशा देते हैं। खासकर वो दर्शक जो स्लीक और साफ क्राइम थ्रिलर देखना पसंद करते हैं, उन्हें कुछ हिस्से भारी लग सकते हैं। ‘Rana Naidu Season 2’ में वही पुराना अंदाज़ है, लेकिन ट्रीटमेंट कहीं ज़्यादा पका हुआ है। राणा और वेंकटेश की टक्कर, तेज़ रफ्तार कहानी और थ्रिल का डोज़—ये सभी इसे एक बार फिर देखने लायक बनाते हैं। अगर आपने पहला सीज़न देखा था, तो दूसरा मिस मत कीजिए। और अगर नहीं देखा, तो ये सही वक्त है शुरुआत करने का।

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