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​​​​​​​Ravan Story: आखिर क्यों अधूरी रह गयी थी रावण की ये बड़ी इच्छाएं, वीडियो में देखें लंकेश की सबसे अजीब लालसाएं

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रावण जितना शक्तिशाली था कि ये सोचना कि उसने जो चाहा होगा, वो पाया नहीं होगा, थोड़ा अविश्वनीय लगता है। लेकिन यह सच है कि रावण की कुछ ऐसी इच्छाएं थीं, जिसे पाने की उसे बहुत लालसा थी लेकिन वो इच्छाएं अधूरे रह गईं और मरते दम तक वो उसे पा नहीं सका। लेकिन ये जानना दिलचस्प है कि रावण जैसे महान राक्षस की आखिर क्या इच्छाएं रही होंगी…

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अजेयता और अमरता की इच्छा

रावण जिस युग का महान राक्षस था, उस युग में कई शक्तिशाली योद्धाओं को अमरता का वरदान चाहिए होता था और वो उसके लिए कठिन तपस्या भी करते थे। रावण की भी सबसे बड़ी इच्छा थी अमरता प्राप्त करना। रावण ने ब्रह्मा से ये वरदान प्राप्त भी किया था कि वो देवताओं, राक्षसों और अन्य प्राणियों से नहीं मारे जा सकते, लेकिन वो मनुष्य को भूल गया। मनुष्य को तुच्छ समझना उसकी सबसे बड़ी गलती रही क्योंकि एक मनुष्य यानि भगवान राम के हाथों ही उसकी मृत्यु हुई।

स्वर्ग की सीढ़ी

रावण एक स्वर्ग तक जाने के लिए एक सीढ़ी बनाना चाहता था और उसने इसके लिए प्रयास भी किया था, लेकिन वो स्वर्ग के लिए सीढ़ी बनाने के बीच में ही सो गया था और उसका ये सपना अधूरा रहा गया था।

खून का रंग सफ़ेद हो

रावण ने कई लड़ाइयां लड़ी थी और उसने बहुत सारा खून भी बहाया था। इसलिए उसके मन में इच्छा थी कि खून का रंग सफ़ेद होना चाहिए, ताकि जब खून बहे तो कोई भी खून को देखकर विचलित न हो सके।

विश्व विजय की महत्वाकांक्षा

रावण की एक और अधूरी इच्छा थी कि वो पूरी दुनिया पर विजय प्राप्त करना चाहता था। इसके लिए उसने अनेक यज्ञ और युद्ध किये और कई राजाओं को पराजित भी किया, लेकिन वो पूरी दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शासक बनने का सपना पूरा नहीं कर सका।

समुद्र का पानी मीठा हो

रावण की लंका समुद्र तट पर बसी हुई थी और रावण चाहता था कि समुद्र का पानी मीठा हो जाए, ताकि उसे पीकर लोग अपनी प्यास बुझा सके।

अपने बच्चों की सुरक्षित भविष्य की चिंता

रावण के की बच्चे थे और वह चाहता था कि उनकी संताने सुरक्षित और समृद्ध जीवन जिए। लेकिन भगवान राम के साथ युद्ध के चलते उसकी कई संतानों की मृत्यु हो गई।

कैलाश पर विजय

रावण भगवान शिव के सबसे बड़ा भक्त माना जाता था। एक बार वो कैलाश पर्वत को अपने निवास स्थान लंका ले जाना भी चाहता था और जिसके लिए उसने पूरा पर्वत उठाने का प्रयास भी किया, लेकिन भगवान शिव ने रावण की इस इच्छा को अस्वीकार कर दिया।

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