प्रमुख उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन कंपनियों में से एक सैमसंग ने भारत में लगभग 520 मिलियन डॉलर (लगभग 4,380 करोड़ रुपये) की कर मांग को न्यायाधिकरण में चुनौती दी है। कर की यह मांग कथित रूप से नेटवर्किंग उपकरणों के गलत वर्गीकृत आयात से जुड़ी हुई है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में मामले से संबंधित दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा गया है कि सैमसंग ने तर्क दिया है कि अधिकारियों को इस व्यापारिक व्यवहार के बारे में पता था, क्योंकि रिलायंस वर्षों से इसी तरह से घटकों का आयात कर रहा था। सैमसंग पिछले कुछ महीनों में देश में कर मांग को चुनौती देने वाली दूसरी प्रमुख विदेशी कंपनी है। इससे पहले, जर्मनी की कंपनी फॉक्सवैगन ने अपने कलपुर्जों के गलत वर्गीकरण के साथ आयात पर लगभग 1.4 बिलियन डॉलर (लगभग 11,796 करोड़ रुपये) की कर मांग को चुनौती दी थी।
इस वर्ष की शुरुआत में, कर अधिकारियों ने सैमसंग से मोबाइल टावर उपकरण के एक महत्वपूर्ण हिस्से के गलत वर्गीकृत आयात के लिए 520 मिलियन डॉलर का भुगतान करने को कहा था। कर अधिकारियों ने कहा था कि कंपनी ने टैरिफ में 10-20 प्रतिशत की बचत की है। सैमसंग ने इस कर मांग को मुंबई स्थित सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती दी है। कंपनी ने कहा है कि कर अधिकारी इस व्यापार मॉडल से पूरी तरह अवगत थे, क्योंकि रिलायंस ने तीन वर्षों तक बिना कोई टैरिफ चुकाए उन्हीं उपकरणों का आयात किया था।
देश में सैमसंग की इकाई ने कहा है कि कर से संबंधित जांच में पता चला है कि रिलायंस को 2017 में इसके बारे में चेतावनी दी गई थी, लेकिन रिलायंस ने उसे सूचित नहीं किया था। सैमसंग ने 17 अप्रैल को दाखिल एक फाइलिंग में यह बात कही। यह दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन रॉयटर्स ने इसे देखा है। सैमसंग और कर प्राधिकरण ने रॉयटर्स द्वारा भेजे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया। इस कर मांग के अलावा, अधिकारियों ने कंपनी के सात कर्मचारियों पर लगभग 81 मिलियन डॉलर (लगभग 682 करोड़ रुपये) का जुर्माना भी लगाया है। यह ज्ञात नहीं है कि सैमसंग कर्मचारियों ने जुर्माने को अलग से चुनौती दी है या नहीं।