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WTC Final 2025: लडखडाने लगे पैर, दौड़ने में निकल रही जान… फिर भी ट्राफी के लिए अडीग टेम्बा बावुमा, मार्करम ने भी जडा सैंकडा

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क्रिकेट न्यूज डेस्क।। लंदन के ओवल मैदान पर खेले जा रहे वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) फाइनल में जहां एक ओर साउथ अफ्रीका के सलामी बल्लेबाज एडेन मार्करम ने शानदार शतक लगाकर अपनी टीम को मजबूती दी, वहीं दूसरी ओर कप्तान टेम्बा बावुमा ने जिस जज्बे और जुझारूपन का परिचय दिया, उसने क्रिकेटप्रेमियों का दिल जीत लिया। हालांकि बावुमा बड़ी पारी नहीं खेल सके, लेकिन चोट के बावजूद मैदान पर डटे रहना और टीम के लिए योगदान देना उनके नेतृत्व की मिसाल बन गया।

मार्करम का क्लासिक शतक

एडेन मार्करम ने वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल जैसे बड़े मुकाबले में जिस तरह संयम और तकनीक के साथ बल्लेबाजी की, वह प्रशंसनीय है। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में आते हुए पहले पिच को पढ़ा, फिर गेंदबाजों को परखा और उसके बाद अपने स्ट्रोक्स खेलने शुरू किए। उनकी पारी में शानदार ड्राइव, कट और पुल शॉट्स देखने को मिले। उन्होंने सिर्फ अपने अनुभव का ही नहीं, बल्कि आत्मविश्वास का भी शानदार प्रदर्शन किया।

मार्करम ने अपने शतक के दौरान लगभग हर प्रमुख गेंदबाज का डटकर सामना किया। यह पारी न सिर्फ उनके करियर की एक बड़ी उपलब्धि रही, बल्कि टीम को संकट से निकालने का भी कार्य किया। उनके बल्ले से निकले ये रन साउथ अफ्रीका की उम्मीदों को जिंदा रखने के लिए बेहद अहम थे।

बावुमा का लीडरशिप स्पिरिट

हालांकि टेम्बा बावुमा इस मैच में बड़ी पारी खेलने में असफल रहे, लेकिन उन्होंने जो जज्बा और समर्पण दिखाया, वह प्रशंसा के योग्य है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बावुमा को पहले ही दिन फील्डिंग के दौरान चोट लग गई थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा और टीम की अगुवाई करना जारी रखा।

जब बल्लेबाजी की बारी आई, तब भी उन्होंने चोट की परवाह किए बिना बल्लेबाजी करने का फैसला लिया। तेज गेंदबाजों के सामने पैर में तकलीफ के बावजूद वे डटे रहे। ऐसे वक्त में जब कप्तान मैदान से बाहर जाने का विकल्प चुन सकता था, बावुमा ने टीम के सामने एक उदाहरण पेश किया – कि नेतृत्व केवल रन बनाने से नहीं, बल्कि मुश्किल वक्त में टीम के साथ खड़े रहने से भी होता है।

खेल भावना की मिसाल

इस मैच ने यह साबित कर दिया कि क्रिकेट सिर्फ स्कोरबोर्ड की कहानी नहीं है, बल्कि यह संघर्ष, आत्मबल और नेतृत्व की भी परीक्षा है। मार्करम की पारी ने जहां तकनीकी उत्कृष्टता दिखाई, वहीं बावुमा का साहस और समर्पण खेल भावना की मिसाल बन गया। दोनों खिलाड़ियों ने अपने-अपने अंदाज में टीम की उम्मीदों को बनाए रखा।

डब्ल्यूटीसी फाइनल जैसे हाई-प्रेशर मुकाबले में जब खिलाड़ी न केवल स्कोर बनाएं, बल्कि आदर्श भी प्रस्तुत करें, तो यह खेल के लिए एक सुनहरा पल बन जाता है। बावुमा का ये जज्बा आने वाले खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

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