भगवान शिव के आभूषणों के पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक अर्थ होता है और उसमें से एक है उनके गले में लटकती मुण्डमाला। इस माला में 108 मुंड यानि सिर होते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सर किसके हैं, जिन्हें महादेव ने अपने गले में धारण किया हुआ है?
माता सती के 108 जन्मों से जुड़ा है यह मुण्डमाला
एक मान्यता के अनुसार, ये 108 मुंड माता सती के 108 पिछले जन्मों की निशानी हैं। इससे पहले भी उन्होंने 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग दिया था। यह सभी उनके ही प्रतीक हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने शरीर का त्याग किया, तो भगवान शिव ने उनके शरीर के टुकड़े कर दिए, जिससे 51 हिस्सों का शक्तिपीठ बना जबकि माता सती के सिर के भागों को अपने हाथ में एकत्रित कर भगवान् शिव ने उसे माला में पिरो लिया। इस प्रकार मुंड माला भगवान शिव और माता सती के प्रेम का प्रतीक मानी जाती है और माता सती के 108 जन्मों के प्रेम और समर्पण को भी दर्शाती हो।
राहु का सिर बना मुण्डमाला
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब समुद्र मन्थन में अमृत निकला, तो भगवान् विष्णु ने मोहिनी रूप धारणकर अमृत कलश को असुरों से लेकर देवताओं में अमृत वितरित कर दिया और इस तरह असुर मोहिनी के मायाजाल में फंसकर अमृत से वंचित रह गए। लेकिन अमृत के लालच में असुर स्वर्भानु वेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और उसने अमृत ग्रहण कर लिया। उसे अमृत ग्रहण करते वक्त सूर्य और चन्द्रमा ने पहचान लिया और श्रीविष्णु से शिकायत कर दी। भगवान् विष्णु ने क्रोध में असुर स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया।
चन्द्रमा भगवान् शिव की शरण में जाकर अपने प्राण की भीख माँगने लगा
मस्तक कट जाने पर धड़ ‘केतु’ बन गया और मस्तक ‘राहु’। अपनी यह दुर्दशा देख क्रोध में राहु विकराल मुख लिए चन्द्रमा को निगलने दौड़ा और उस समय अमृत भी चन्द्रमा के पास ही था। चन्द्रमा ने बहुत बचने की कोशिश की लेकिन राहु ने चन्द्रमा को पकड़कर निगल लिया किन्तु धड़ न होने के कारण चन्द्रमा उसके गले से बाहर निकल आया। राहु को समझा आया कि उसे चन्द्रमा को निगलना नहीं बल्कि चबा जाना चाहिए था। चन्द्रमा को चबाने के लिए उसने उसे फिर पकड़ने की कोशिश की लेकिन चन्द्रमा भगवान् शिव की शरण में जाकर अपने प्राण की भीख माँगने लगा।
अमृत के प्रभाव से राहु के अनेक सिर हो गए
भगवान् शिव ने चन्द्रमा को अपनी जटा पर धारण कर लिया। इतने में राहु भी शिवजी के पास पहुंचा और उन्हें असुरों का भी परम आराध्य बताकर चन्द्रमा की मांग की। भगवान शिव ने राहु से कहा – ‘मैं सबका आश्रयदाता हूँ। सुर और असुर दोनों मुझे प्रिय हैं। तुम्हारे पास उदर नहीं है, इसलिए तुम्हें भोजन की आवश्यकता नहीं। लेकिन आश्रयस्वरूप मैं भी तुम्हें धारण करता हूँ’। इस तरह राहु भी चन्द्रमा के बगल में स्थित हो गया लेकिन राहु के डर से चन्द्रमा इतना काँपा कि उससे अमृत बहने लगा और अमृत के प्रभाव से राहु के अनेक सिर हो गए। भगवान् शिव के धारण करने से वो वैसे ही शक्तिशाली हो गया था। राहु के 108 सिर हो जाने पर भगवान शिव ने उन सिरों को लेकर मुण्डमाला बना ली और इस प्रकार राहु हमेशा के लिए भगवान शिव के कण्ठ का आभूषण बन गया।